अब प्रदेश के किसान जंगली औषधीय पौधों को खेतों में उगा सकेंगे। हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला के वैज्ञानिकों ने हिमालय में उगने वाली कुटकी की एचएफआरआई-पीके-1 और एचएफआरआई-पीके-2 किस्में, मुश्कबाला की एचएफआरआई-वीजे-1 और एचएफआरआई-वीजे-2 किस्म और वन-ककड़ी की एचएफआरआई-एसएच-1 किस्म तैयार की हैं। इसे किसान अपने खेतों में उगा सकेंगे। औषधीय पौधों का उपयोग कई प्रकार के रोगों के रोकथाम के लिए प्राचीन समय से किया जाता था। पिछले कुछ समय में आयुर्वेद और पारंपरिक दवाइयों का चलन बढ़ गया है। प्रदेश में करीब 800 जंगली प्रजातियों का उपयोग औषधी के रूप में होता है।
इनमें से अधिकतर को जंगलों से इकट्ठा किया जाता है। पर्यावरण को हो नुकसान के कारण इनमें से प्रदेश में उगने वाली 60 प्रजातियां खतरे में हैं। राज्य से 165 औषधीय प्रजातियों का उपयोग व्यापारिक तौर पर होता है। औषधीय पौधों के संरक्षण और लोगों के लिए इनके व्यापार से नए आर्थिक अवसर पैदा करने के लिए हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने कुटकी, मुश्कबाला और वन-ककड़ी की किस्में तैयार की हैं।